Friday, 21 July 2023

हुकम

हुकम हैं गरम आज फिर सुबह से ही,
ठीक हो के निकले हैं जो बीमारी से,
झगड़ के पूछ रहे हैं हाल ए गुलाम,
इल्म हो जाये उन्हें अपनी मालिकनी पे,

हम भी खामोश, गर्दन झुकाते हैं उनको
इज़्ज़त बचानी जो है दुनिया के पैखाने में,
उनको हक़ भीड़ में जताना होता हैं,
जलवा दुनिया को हुक़्म को जो दिखाना होता हैं।

जानता हूँ हुक्म जिंदगी में खुश हैं बहुत
गम एक मेरे सिवा अब उनको नसीब है ही नहीं
खता बस इतनी हुई उनकी खुद से,
देखना रोज़ कर लिया कुबूल ये चेहरा मेरा।

Thursday, 20 July 2023

उम्मीद

उम्मीद हैं मालिक मेरा खुश होगा अभी,
देखते हैं बख्शीश या फिर कोड़ा ही मिलेगा।

Thursday, 6 July 2023

मालिक 1

मालिक हुए हैं फिर खफा,
                   गलती जो हो गयी,
बोलने की उनके आगे,
                    कैसे हिम्मत जो हो गयीं।

खामोशी

खामोशियाँ ही बस, जिंदगी का सार है,
                बोलना तो बस कटार की धार हैं,
बतियाना हैं बस मना, सुन लो फिर आधार हैं,
                चुप्पियों का ही बस अब बचा संसार हैं। 
                

Wednesday, 5 July 2023

मालिक

मेरा मालिक मुझ पे,
          बहुत मेहरबान हैं,
जख्म देता है जो तो,
          मर्ज भी वहीं पूछता।