Thursday, 15 August 2024

दोहा

हो नहीं सकता मैं उनके,

आंख का काजल सही,

मुझ को हैं मंजूर होना,

नजरबट्टू का टीका ही सही।

Wednesday, 10 April 2024

कोविड़

मुद्दतों बाद मिली फुरसत ऐसी,
कफन की तलवार पर, गर्दन पे रखी,
ये देखो गर्दिश ने, रचा रूप कैसा,
इंसान ही नहीं, खुदा भी पाबंद हुया।

कविता

मेरे एकाकी जीवन की,
तुम हो कोई मूर्त कल्पना,
मेरे मन के भावों की,
तुम हो एक साकार सी रचना।

ऐ री मेरी प्यारी कविता।

छोटे तीर

हूँ धुंधलके में जरा,
        पर आग मेरी संग हैं,
गुमशुदा समझो या काम का समझों नहीं,
        लौ को थोड़ी तेज होने का रखो, सब्र बस।

दीवाली

दीपों की अवली के जैसी,
             खुशियां खड़ी हो कतार में,
रिद्धि सिद्धि के साथ पधारे,
              गणपति आपके धाम पे,
मां लक्ष्मी की अगुवाई में,
              मां सरस्वती आशीष दे,
धन धान्य ही नहीं वरन,
              उत्तम स्वास्थ्य का वर मिले,
गोवर्धन बाबा की आभा में,
               प्रकृति से उपहार मिले,
जीवन में नित नई ऊंचाइयों के,
                  नए नए आयाम रचे।      

कविता

मैं देखूं बस पास को,
                      दूर न देखो जाए,
ऐसी गफलत न हो जाए कहीं,
                      "सरस" कहीं खो जाए।

आज जिस से न फर्क हो,
                       कल जरूरत पड़ जाए,
जिस पे वारा आज "सरस"
                        वो पीछे न हो जाए।।